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मैच्युरिटी - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कहानीउपन्यास

मैच्युरिटी

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मैच्युरिटी
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भाग (4)
घर में सबके लिए समय बहुत जल्दी जल्दी निकलता जाता था | पर शायद इस धरती पर दो प्राणी देवेन्दु राय और मूर्ति ऐसे थे जिनके लिए समय काटे न कटते थे | दोनों के दिलों में एक दूसरे को देखने की उत्कट इच्छा ने अपना साम्राज्य जमा लिया था जो इनहें दिन रात बेचैन करती थी | वैसे भी जब आदमी के अन्दर कोई इच्छा या चाह घर कर ले तो उसे बिना पूरे हुए शांति नहीं मिलती | इन दोनों की इस इच्छा को वासना कहना साथ इनके कोमल भावनाओं पर कुठाराघात करना होगा | इसे इनकी जिज्ञासा कह सकते हैं | दोनों एक दूसरे को देखना और जानना चाहते थे इससे ज्यादा कोई ख्याल इनके मन में हो भी नहीं सकता था |
समय अपनी गति से चलता जाता था | जैसे जैसे समय निकट आता जाता था हलचल तेज होने लगी थी | आज लड़की पक्ष के लोग तिलक की रस्म अदायगी करने आनेवाले हैं | सुबह से ही धुनाई रविदास अपना बड़ा सा ढोल लेकर घर के बाहर चबूतरे पर बैठ गया है | और थोडी देर रूक रूक कर ढोल बजा रहा है | दिन भर तो बजाना ही है न जाने रात कितने बजे तक का मुहुर्त है उसे इसका क्या पता | उसे तो कह दिया गया ढोल बजाना है और तब तक बजाना है जबतक कार्यक्रम का समापन न हो जाए |
पंडित जी सूर्यास्त होने से पहले ही पधार चुके हैं ,और चावल के आँटे से आँगन में चौंका पूरा रहे हैं
जहाँ वर को बैठना है | आसपास की औरतों की चहल पहल सुबह से ही है जो संध्या होते काफी बढ़ गयी है |
कुछ औरते विवाह के गीत गाने में महारत हासिल की हुई हैं उनसे गीत गाने का आग्ह किया जा रहा है | अचानक ही सुचित्रा राय जो अब तक चुप थी | देवेन्दु राय को आवाज देती हैं | तुम कहाँ हो | माँ मैं नहाने जा रहा हूँ यह कहकर देवेन्दु राय पास के कुएँ पर नहाने चले गए | नाई ने इन्हें जल्दी जल्दी स्नान करवाया | और नई धोती जो पीले रंग में रंगी थी पहनने के लिए कहा |
देवेन्दु राय जो अबतक पैंट का नाड़ा ठीक से नहीं बाँध पाते थे भला धोती पहनना क्या जाने | उन्हें धोती भी नाई को ही पहनाना पड़ा | जिसके एवज में सवा रूपये का चढ़ावा उसे चढ़ाना पड़ा |
तिलक का मुहुर्त बीता जा रहा था | पंडित जी ने जल्दी करने की हिदायत दी | प्राय: ऐसे जोरदार लगन के दिन कई घरों में शादियाँ होती है और पंडित जी की माँग बढ़ जाती है | पंडित जी को और कई जगह रस्म कराने थे ,इसलिए उन्हें जल्दी थी | वैसे भी लगन खत्म होने पर कमाई का जरिया रह कहाँ जाता है | वर्ष भर का खर्चा लगन की कमाई से ही तो पूरा करना पड़ता है | इसलिए पंडित जी भी जल्दी ही रस्म पूरी करने में लगे थे |
तिलक में पाँच सौ रूपये नकदी के अलावा काँसे और पीतल के बरतन थे जिनका उपयोग सामान्य दिनों में न होकर कार्य प्रयोजन में ही हो सकता था | विवाह के गीतों की एक अलग ही लय होती है ,जो सुनने में मधुर तो लगता ही है साथ साथ लगता है लगन आसमान से आँगन में उन गीतों ने उतार लाया हो | एक अलग ही माहौल बन जाता है | हर किसी के मन को लगनमय बना देता है | इन्हीं गीतों के बीच कार्यक्रम सम्पन्न हो गया |
लगन पत्री का आदान प्रदान हुआ | और विवाह के दिन उँगलियों पर गिने जाने लगे | आज से बस अब सात दिन बचे थे |
बारात जाने की तैयारी होने लगी | सभी सामान जो इतने दिन से इकट्ठा किए गए थे सजाए जाने लगे | कपड़े ,खिलौने ,मिठाईयाों की टोकरियाँ सब जाना था |
शुभेन्दु राय को चिंता थी कि कहीं कोई कमी न रह जाए | इसलिए सबकुछ वे अपनी देख रेख में पूरी करवाना चाहते थे |

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दादी की परी
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