खुद के लिए क्या ही लिखू मैं....
मुझे मिला साहित्य अर्पण का सहारा..
की मैं उतार सको अपने मन के बोझ को शब्दो मे पिरो के...
बस एक ऐसी ही चमक चाहिए ज़िन्दगी मैं मे की मैं बस लिखती रहू और लिखती ही रहू
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