कविताअतुकांत कविता
शीर्षक - आसान नहीं है
कविता - मुझे समझ पाना आसान नहीं, मैं तो खुद से भी अंजान सी हूं।
कभी दिन का उजला सबेरा, तो कभी अंधेरे में ढलती शाम सी हूं।।
मुझे समझ पाना आसान नहीं, मैं तो खुद से भी अंजान सी हूं।
रोशनी से भरे अंबर में, कोशों दूर टिमटिमाता इक छोटा सा तारा हूं।
दरिया बन कर मैं खुद को डुबाती, तो कभी खुद बन जाती एक किनारा हूं।
उम्मीद नहीं लगाती हूं गैरों से, बस बन जाती मैं अपना ही सहारा हूं।
और मुझे मालूम नहीं है रस्में कसमें इस दुनियां की,
खुद में खो कर जीने वाली मैं, इक बेबाक परिंदा सी आवारा हूं।।
कौन, क्यों, क्या, कब कहता है मुझको, इन फिक्रों से बेफिक्र सी लड़की...
मुट्ठी भर धरती पर रह कर भी, बिखरे खुले आसमान सी हूं।
और मुझे समझ पाना आसान नहीं, मैं तो खुद से अंजान सी हूं।
कभी अकेले में भी खुश मैं रह लेती हूं, तो कभी भीड़ में भी गुमनाम सी हूं।
मुझे समझ पाना आसान नहीं है, मैं तो खुद से भी अंजान सी हूं।
~कविता पंथी