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कवितानज़्म
मान कि बहोत मश्ग़ूल हो तुम "बशर" गोरखधंधे में अपने फिरभी कभी वक़्तनिकल मां-बाप के पास बैठ जाया करो फ़जूल नहीं जाया होगा एक भी पल हो जाएअंगी मयस्सर मसर्रतें अपार बे - शुमार मां - बाप के पास बैठ जाया करो © "बशर"