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आनेवाले १४ सितम्बर को हमसभी हिंदी दिवस मना रहे हैं जो कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के स्मृति में हर वर्ष मनाया जाता है। "हिंदी" यह एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही जेहन में एक मीठी सी लहर कौंध उठती है और सहसा ही सर गर्व से ऊँचा हो जाता है। "हिंदी" हमारी राष्ट्रभाषा, मातृभाषा और हिंदुस्तान की आत्मा है। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक एवं पूरब में अरुणाचल से लेकर पश्चिम में कच्छ के रण तक "हिंदी" बड़े ही शान से पढ़ी, लिखी और बोली जाती है। "हिंदी" एक ऐसी भाषा है जिसकी उत्तपत्ति दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत से हुई है। "हिंदी" की महत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 14 सितम्बर 1949 ईo को संविधान बनाने वाले अलग-अलग प्रान्त से सम्बन्ध रखनेवाले एवं अलग-अलग भाषा के विद्वानों ने एक स्वर में "हिंदी" को ही राष्ट्रभाषा बनाने पर अपनी स्वीकृति प्रदान की। "हिंदी" एक ऐसी भाषा है जो उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं के शब्दों को भी आसानी से अपने में समाहित कर लेती है। हमारी "हिंदी" ने मुंशी प्रेमचंद, सुमित्रानन्दन पंत, महादेवी वर्मा, हरिवंशराय बच्चन जैसे अनेकों हिंदी साहित्यकार दिए हैं जिन्होंने "हिंदी" भाषा में काफी प्रसिद्धि अर्जित करते हुए "हिंदी" को ख्याति दिलाई है।
"हिंदी" दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोलनेवाली भाषा है। "हिंदी" संसार के कई देशों में बोली जा रही है और कई देशों में इसका तेजी से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। भारत की बात करें तो कभी एक समय था जब दक्षिण भारत में हिंदी नहीं के बराबर बोली जाती थी परन्तु अब वहाँ भी "हिंदी" का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से भी तेजी से "हिंदी" के प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। ऐसे कई समूह हैं जो "हिंदी" के प्रचार-प्रसार में निरन्तर सफल प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में हमारे अपने समूह "सहित्य अर्पण" का भी काफी अहम योगदान रहा है। हमारी आदरणीया "नेहा शर्मा" दीदी ने तो इस ओर बहुत ही सकारात्मक प्रयास कर रही है और देश से बाहर रहकर भी "हिंदी" भाषा के विकास की अलख जलाए हुए है।
वर्तमान में जिस गति से हमारे जीवन में पश्चिमी जगत की संस्कृति का असर पड़ रहा है इससे हमारी "हिंदी" भाषा भी अछूती नहीं है। आज का युवावर्ग अंग्रेजी को हिंदी पर ज्यादा महत्व देने लगा हैं परन्तु आज भी काफी संख्या में युवा वर्ग हिंदी साहित्य की ओर अपना समर्पण दिखा रहे हैं। आज हिंदी साहित्य के माध्यम से युवा वर्ग में हिंदी को लेकर जो रुचि जागृत हुई है वह काबिले तारीफ है। अगर इन युवाओं को अनुभवी साहित्यकारों का सही मार्गदर्शन मिल जाये तो हमारी "हिंदी" का भविष्य काफी उज्ज्वल हो जाएगा। हमसभी को मिलकर "हिंदी" को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भाषा बनाने में अपना अहम योगदान देना होगा।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।