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वक्त के विरुद्ध - Sonam Puneet (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

वक्त के विरुद्ध

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  • 6 Min Read

वक्त के विरुद्ध
_____________

जन्म से लेकर अब तक
खेलते रहे हर वक्त
अब वक्त ने खेला ऐसा
जीने मरने लायक भी
नहीं रहने दिया

मैं जा रहा हुं
वक्त के विरुद्ध
वक्त रुका जो है
मजे ज़िंदगी के ले रहा है

मैं हारा नहीं हुं
वक्त से अबतक
जीवित हूं जबतक
चलूंगा जीवन रुकने तलक

वक्त रोकेगा ज़रूर
मेरे कदमों को
दिन आखरी होगा वो
जिस दिन में रूक जाऊंगा

मैं जानता हूं
रास्ते में कंकड़ पत्थर ही मिलेंगे
कुछ दूर तलक जाकर
मुझे मंज़िल भी मिलेंगी

अकेला हूं राह में
कोई नहीं है साथ
जाना तो है
जीवन जीना है
हर हाल

अनजान रास्तों पर
कोई नहीं है साथ
मुस्किल रास्ता है
हार नहीं मानूंगा

मेरी परछाई
और मैं हूं यहां
ए धरती गगन
चांद और तारे
ये हवाएं भी हैं
सभी तो हैं साथ

इस अनजानी डगर
नहीं हूं अकेला मैं
खुशी इस बात की है
रोकने कोई नहीं आएगा
मेरे कदमों को

आंसू बह रहे
पोंछने कोई नहीं आएगा
हौसला टूटा या
मैं टूटा बिखरा हूं
देखने कोई नहीं आएगा

मैं हारूंगा या जीतूंगा
पूछने कोई नहीं आएगा

अब रूकने की बात नहीं
चलना ही नियति है

जो वक्त गुज़र गया
बदल नहीं सकता हूं मैं

लेकिन आज़ को
ख़ुद लिख सकता हूं मैं

मेरे वक्त से नहीं
ख़ुद से हारा था मैं
अब भी अवसर मिला है मुझे
जीत कर आऊंगा मैं

___दुबे पुनीत सोनम

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