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एक परिंदा - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

एक परिंदा

  • 37
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एक परिंदा रोजाना मेरे कमरे के दरीचे में आ जाता है
लगता है के उससे मेरा पिछले जन्म का कोई नाता है

फुदक फुदक कर कंठ से अपने तराना कोई सुनाता है
इसको लगता हैके मुझको सबकुछ समझ में आता है

© "बशर" بَشَر 🍁

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