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सपने देखा करो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सपने देखा करो

  • 25
  • 2 Min Read

रोज -ओ-शब नये नये ख़्यालात और नये नये सपने देखा करो
मंज़र चाहे जोभी हो अपनों के लिए जज़्बात अपने देखा करो

नोक झोंक गिला-शिकवा कहा सुनी तो हयात में लगी रहती है
अपनों को कोसने के बजाय सूरत -ए-हालात अपने देखा करो

© dr. n.r.kaswan "bashar" 🍁

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