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कवितानज़्म
रोज -ओ-शब नये नये ख़्यालात और नये नये सपने देखा करो मंज़र चाहे जोभी हो अपनों के लिए जज़्बात अपने देखा करो नोक झोंक गिला-शिकवा कहा सुनी तो हयात में लगी रहती है अपनों को कोसने के बजाय सूरत -ए-हालात अपने देखा करो © dr. n.r.kaswan "bashar" 🍁