कवितालयबद्ध कविता
आज पुराना ख़त मिल गया...
खुद आईने सी हो गई और ..
मेरा बिंब ही मुझको छल गया...
एक आँच सी धधकी जब ,
धुआँ उठा दहक कर...
धुंधले आंखों से झाँका तब,
आंखों का पानी खल गया....
आज पुराना ख़त मिल गया...
ये कैसी बगावत हो रही ...
सोच समझ जवाब दे रही...
ये कैसा बिसरा सुध है,
जो मुझसे मुझको लील गया...
आज पुराना ख़त मिल गया...