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Sahitya Arpan - Nalini Tiwari

कवितालयबद्ध कविता

तसल्ली...

  • Added 5 months ago
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  • 79
  • 5 Mins Read

तसल्ली...
अरे ! आतंकी हमला हुआ है..
कहीं जम्मू में तो नहीं???
हां ,हां ,जम्मू में ही ....
कहीं कोई शहीद तो नहीं???
हां, तेईस जवान हुएं ....
कहीं उनमें मेरा लाल तो नही???
हां सातवां नाम उसी का है...

अब "लाश" मिले
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तसल्ली...  ,<span>लयबद्ध कविता</span>
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सुविचारअनमोल विचार

उड़ान

  • Added 7 months ago
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  • 29
  • 1 Mins Read

आसमाँ नापने खग जो चला था
जमीं पर पंख फैलाए खड़ा था। ।।

उड़ान ,<span>अनमोल विचार</span>
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कवितालयबद्ध कविता

"प्रेम का पक्ष.."

  • Added 7 months ago
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  • 106
  • 5 Mins Read

"प्रेम का पक्ष.."
पतली उजली लकीर सा चाँद,
मैं अकेली एक छोर ,तुम अकेले एक छोर...
सतह मिली तो बढ़ने लगे फिर..
मैं चली तुम्हारी ओर,तुम चले आए मेरी ओर...
प्रेम की मिलकर ज्योत जलाई,
तुम मेरे मन चोर पिया,मैं बनी
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कविताअतुकांत कविता

बेटी

  • Added 7 months ago
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  • 48
  • 5 Mins Read

बेटी ...पाप.. सौभाग्य ..श्राप..
ये सब तुम्हारे शब्द हैं ...
मैं तो अभी बनी भी नहीं..और इतनी अखर गई ...
माँ ...बाप...बाबा ...अम्मा..
ये सब तुम्हारे रिश्ते हैं...
मैं तो अभी अंधी हूं...और सबकी आँखें भर गई ...
अभी कल ही
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 बेटी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

"राहें और मंजिल"

  • Added 7 months ago
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  • 48
  • 2 Mins Read

"राहें और मंजिल"

हाथों की लकीर सी राहें,
नसीब सी मेरी मंज़िल...

उमड़ती काली बदरी सी राहें,
बरखा सी मेरी मंज़िल....

ख्यालों के सैलाब सी राहें ,
कविता सी मेरी मंज़िल...

खग के बिखरे तिनकों सी राहें,
नीड़
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कवितालयबद्ध कविता

आज पुराना ख़त मिल गया...

  • Added 7 months ago
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  • 50
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आज पुराना ख़त मिल गया...

खुद आईने सी हो गई और ..
मेरा बिंब ही मुझको छल गया...

एक आँच सी धधकी जब ,
धुआँ उठा दहक कर...
धुंधले आंखों से झाँका तब,
आंखों का पानी खल गया....

आज पुराना ख़त मिल गया...

ये कैसी बगावत
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आज पुराना ख़त मिल गया...,<span>लयबद्ध कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता, अन्य

"एक सौदा ऐसा भी..."

  • Added 7 months ago
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  • 99
  • 4 Mins Read

बाज़ार लगा था,उसी सामान का..दुकानें रंग बिरंगी थी...
मैं ढूँढने निकला उसको ,जिसकी मुझे ज़रूरत थी ...
ज़रूरत कुछ ऐसी थी कि मुश्किल मेरा जीना था...
तमाम सामानों में से मुझे कोई न कोई चुनना था...
जो जितना
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कविताअतुकांत कविता

राख भरा कुंड।।

  • Added 7 months ago
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  • 89
  • 3 Mins Read

जल चुकी चिता मगर ..अब भी है बाकी ..
साँसों का झुंड ,
आँखों की धुंध ,
और... राख का कुंड !!
अस्थि का ढेर ,
कर्मों का फ़ेर,
और... घनघोर अंधेर !!
काठ कालीख,
दुर्जन की सीख ,
और... अपनों की भीख !!
स्याही - दवात ,
डायरी
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राख भरा कुंड।।,<span>अतुकांत कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

पिंजर अम्बर

  • Added 7 months ago
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  • 61
  • 3 Mins Read

खरीदी है मैंने पंख अपनी ,
रखकर आज़ादी को गिरवी !!
उड़ रही हूँ पंख लिए ,
उड़ती ही रहूँगी जब तक
छुड़ा ना लूँ पंखदार से
अपनी गिरवी पड़ी आज़ादी ...
नहीं देखनी राह किसी की
जो ले आए आज़ादी मेरी ..
एक जगह से दूजे
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पिंजर अम्बर ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

मेरी ऐनक

  • Added 7 months ago
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  • 87
  • 4 Mins Read

उठते ही ढूँढूँ चारों ओर,वो मेज़ किनारे जा छुप जाती..
मैं चौंधियाई आँखें मींचूँ ,वो हाल देख मेरा मुस्काती..
फिर टोह टटोलकर जैसे तैसे हाथ जहाँ वो मेरे आती..
झट गोद उठा आँखों का तारा,आँखों के सामने बिठाती..
दुलारी
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मेरी ऐनक ,<span>लयबद्ध कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

दुखिया की बेटी

  • Added 7 months ago
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  • 92
  • 9 Mins Read

एक दुखिया की बेटी थी...
यूं ही बिस्तर पर लेटी थी ...
वह लेटे लेटे सो गई ...
अपने सपनों में खो गई ...
देखा उसने एक हसीन सपना ...
था उसका भी एक घर अपना ....
नींद खुली तो देखा क्या ...
था यथार्थ नहीं सपना ...
आ गया था
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दुखिया की बेटी ,<span>अतुकांत कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

जाने तू कहाँ है माँ

  • Added 7 months ago
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  • 83
  • 6 Mins Read

दौड़ धूप से भागे भागे ,
आदत से मजबूर माँ..
राहें तेरी ताक रहा हूं,पर जाने तू कहाँ है माँ...

नहीं तौलिया तो आँचल से,
पसीना पोंछा करती थी माँ...
आज पसीने सूखे यूं ही,
आँचल तेरा कहाँ है माँ....

राहें तेरी
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जाने तू कहाँ है माँ ,<span>लयबद्ध कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

मैं फलक राग की रागिनी

  • Added 7 months ago
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  • 97
  • 4 Mins Read

मैं फलक राग की रागिनी ,
जो गाओ तो बनूँ संगीत ।

बाँसुरी के तान से छूटी ..
वीणा के तारों में टूटी ..
आरोह बन आकाश चढ़ी ..
अवरोह गिरी पूरा कर गीत ।

मैं फलक राग की रागिनी
जो गाओ तो बनूँ संगीत ।।

कंठ की सीढ़ी
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मैं फलक राग की रागिनी ,<span>लयबद्ध कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

छू कर देखूँ क्या आसमान!!

  • Added 7 months ago
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  • 79
  • 3 Mins Read

छू कर देखूँ क्या आसमान!!

रातें ज़िंदगी हो गई
दिन का कोई पता नहीं...
तम में रोशनी ही रोशनी
चमक में दिखता नहीं...
हूं मोड़ पर एक कोने
बटोर रही हूं कुछ राहें
फिर छींट दूंगी डगर
जहां कोई रस्ता नहीं...
पहाड़
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छू कर देखूँ  क्या आसमान!!,<span>लयबद्ध कविता</span>
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