लेखसमीक्षा
एक पाठकीय समीक्षा
' ट्वेल्थ फ़ेल' : उपन्यास
लेखक : अनुराग पाठक
प्रकाशक : नियोलिट प्रकाशन
अमेजन पर भी उपलब्ध
दिल्ली का मुखर्जी- नगर,
जहां रहकर बहुत से छात्र छात्राएँ, पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं और यहां के विख्यात कोचिंग संस्थानों में प्रवेश लेते हैं. इस विषय पर मैंने कई अच्छे उपन्यासों के विषय में, सोशल - मीडिया पर पढ़ा था, उसमें से एक उपन्यास '' ट्वेल्थ फ़ेल '' के विषय में भी पढ़ा था. जो मुखर्जी नगर की प्रष्ठभूमि में लिखा गया है.
इस उपन्यास की समीक्षा लिखने के बाद, इस पर फिल्म बनने से, इसका महत्व और भी बढ़ गया है..
फिल्म '' ट्वेल्थ फेल ". बहुत लोकप्रिय हो रही है.. युवा वर्ग द्वारा भी ख़ूब देखी जा रही है..
कुछ दिन हुए मैं यू ट्यूब पर यूनियन पब्लिक सर्विस के एक कोचिंग संस्थान, '' द्रष्टि '' का चैनल देख रहा था. '' द्रष्टि समूह " के प्रबन्धक निदेशक, डॉक्टर दिव्य - कीर्ति की कक्षा थी. वे नये एडमिशन पाये लड़के-लड़कियों को सम्बोधित कर रहे थे. उनकी पढ़ाने की विधि, कानसेप्ट क्लियर करने का उनका प्रयास, उनके सरल स्वभाव से मैं बहुत प्रभावित हुआ.. उनके चैनल पर कुछ वीडियो मैंने देखे थे. वे अलग - अलग विषयों पर चर्चा करते रहते हैं. .
उनकी एक कक्षा ' कश्मीर' के विषरलय में स्वतंत्रता पूर्व से लेकर 370 हटाने तक, रियासतों के भारत में विलय,आदि की पूर्ण और आधिकारिक जानकारी थी.
हिन्दीभाषी छात्र जिनकी अंग्रेज़ी अपेक्षाकृत कमजोर थी, उनके लिए विषयों और माध्यम के चयन के विषय में भी वे बहुत अच्छा दिशानिर्देशन कर रहे थे.
एक दिन अचानक मैंने चैनल पर देखा कि
'' ट्वेल्थ फ़ेल '' पुस्तक की चर्चा हो रही थी. पुस्तक के लेखक, तथा मुख्य पात्र 'मनोज और श्रद्धा' भी बैठे थे.तीनों ही उनके अत्यंत प्रिय छात्र रहे थे. कुछ विशिष्टताओं के कारण वे अभी भी उन्हें भलीभांति याद धे. जिसका उल्लेख भी डाक्टर दिव्यकीर्ति ने अपने मनोरंजक अन्दाज़ में किया. लेखक तथा मुख्य पात्र मनोज शर्मा जी ने भी अपने विचार भी व्यक्त किए.
डाक्टर दिव्यकीर्ति उनके विषय में वार्तालाप कर रहे थे.
पुस्तक की भूमिका भी डा दिव्यकीर्ति ने लिखी है और वह अपने आप में पठनीय है..
मैंने सोशल मीडिया पर इस पुस्तक की बहुत चर्चा सुनी थी. अतः मेरा ध्यान तुरन्त चला गया.
मैने तुरन्त अमेजन पर पुस्तक मंगाने के लिए आर्डर कर दिया और प्रतीक्षा करने लगा. इस बीच पूरा वीडियो ध्यान से देखा.
मनोज और श्रद्धा उनके अत्यंत प्रिय छात्र रहे थे, जिन्होंने अथक परिश्रम से प्रतियोगी परीक्षाओं में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की थी. यह 2005 के आसपास की बात है. मनोज 'आई पी एस' अधिकारी बन गये और श्रद्धा आइ आर एस में सफल हुयी. मनोज को जीवन में सभी क्षेत्रों में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा.
लेकिन जीवन की एक घटना ने उस पर इतना प्रभाव डाला कि वह असफलताओं के बाद भी, साहस से डटा रहा. हुआ यह कि मनोज के गांव के स्कूल में, जहां अन्य कई जगहों की तरह सामूहिक नकल, एक आम बात थी. वहां के नये एस डीएम ने चेक करने के लिए छापा डाला, 12वीं कक्षा की गणित की परीक्षा थी. एस डी एम महोदय पूरी परीक्षा में वहीं रहे, नकल नहीं हो सकी और सभी फेल हो गये..! बाद में, मनोज ने प्रशासन की सत्यनिष्ठा और फलस्वरूप लोगों को वास्तविक न्याय मिलते देख, रिश्वतखोर थानेदार की धांधली समाप्त होते देख वह इस सेवा में सम्मिलित होने के विषय में, गम्भीरता से सोचने लगा.
परिवार में अनेक आर्थिक समस्याएं थीं. उसने कई लोगों से बातचीत की, जो इस विषय में कुछ जानते थे
, इस संघर्ष में उसे कुछ लोगों का सहयोग और सहायता भी मिली. भयंकर आर्थिक कठिनाइयों के बावज़ूद, उसने संघर्ष किया, छोटे से छोटा काम किया, अथक परिश्रम किया ताकि वह कोचिंग के लिए, रहने, तैयारी करने, पुस्तकों आदि के खर्च उठा सके.. उसे नये अनुभव भी मिले.
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों की एक अलग ही दुनिया है .. जिसकी पूरी झलक पुस्तक में दिखती है.
जैसी की वर्तमान स्थिति है. पूर्ण रूप से सफल छात्रों की संख्या, बहुत कम होती है, बहुत सी असफलताएं भी होती हैं.. उनके लिए सन्देश है कि केवल इस असफलता से जीवन में सब कुछ समाप्त नहीं हो जाता.. सफलता के रास्ते और भी हैं.
इस पुस्तक के पात्र वास्तविक हैं,और उन्होंने अथक संघर्ष के द्वारा सफलता प्राप्त की है, इसी लिए यह बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी है.
उपन्यास की लेखन-शैली बहुत अच्छी और प्रभावपूर्ण है.
मुझे यह पुस्तक बहुत अच्छी लगी.
सभी छात्रों के लिए और अन्यथा भी, यह पुस्तक पठनीय और प्रेरणा दायी है.
कमलेश वाजपेयी