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मातृ-पिता ही प्रथम गुरु - संदीप शिखर (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मातृ-पिता ही प्रथम गुरु

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माँ जहाँ में हमे लाती है,पिता हमे बढ़ना सिखाता है
माँ खुशियाँ हमे देती,पिता गम से लड़ना सिखाता है

माँ बनती मन का दर्पण,पिता बनता दर्पण की परछाई
माँ हमे जीना सिखाती है,पिता चेहरे पड़ना सिखाता है

रिश्तों की अहमियत हमे,माँ-बाप मिलकर बताते यहाँ
माँ प्रेम हमे सिखाती,पिता जिद पर अड़ना सिखाता है

माँ-बाप के सिवा अपना,कोई भगवान नही है शिखर
हर हाल में मिलकर रहना,नही जो बिछुड़ना सिखाता है

स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। वाराणसी(U. P)

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