कवितागजल
डरे से,सहमे से और घबराये नजर आते है
ख़ौफ़जदा हमें अब तो साये नजर आते है
जिनमे पलभर का सुकू नजर नही आता
हमे सभी दर्द के आजमाये नजर आते है
किसे हमसाया कहे,किसे हमसफ़र अपना
मुझे अपनो में ही अब,पराये नजर आते है
खुद को हकीमें मुहब्बत बता रहे जो लोग
दिल पे ठोकरो को खुद,खाये नजर आते है
जिन आँधियों के खिलाफ,ये लड़ रहे थे जंग
दीपक उनके ही थपेड़ो के,बुझाये नजर आते है
कैसे आबाद करोगे और किसको आबाद करोगे
ये लोग बर्बाद गुलशन के,ठुकराये नजर आते है
दिल चीर कर लिख रहे है,गमे दर्द का हर फसाना
फिर भी क्यो नही तुमको,हम सताये नजर आते है
स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। #वाराणसी(U. P)