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तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया

  • 93
  • 2 Min Read

शाम ही रहने दी ना के सवेरा ही रहने दिया
शब-ए-ग़म ने गोयाके अंधेरा ही रहने दिया

जिस सुकून- ए-क़ल्ब के तलबगार हम रहे
वो तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया

हवाओं ने परिंदों को इसक़दर किए दरबदर
शजर ही रहने दिया ना बसेरा ही रहने दिया

आशियाँ छोड़ कर वीरान कर गए यूं मकीं
संतरी ही रहने दिया न पहरा ही रहने दिया

© ✒️ डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁

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