कवितालयबद्ध कविता
छू कर देखूँ क्या आसमान!!
रातें ज़िंदगी हो गई
दिन का कोई पता नहीं...
तम में रोशनी ही रोशनी
चमक में दिखता नहीं...
हूं मोड़ पर एक कोने
बटोर रही हूं कुछ राहें
फिर छींट दूंगी डगर
जहां कोई रस्ता नहीं...
पहाड़ के तह पर खड़ी
निहारती खाई की गहराई
बस जाऊं उर धरती के में
मोती श्रृंग पर टिकता नहीं...
मैं सूर ख्वाबों की सी हूं
क्या बंद क्या खुली आँखें
छू कर देखूं क्या आसमान
ये नभ मुझे दिखता नहीं..
- नलिनी तिवारी