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कवितानज़्म
है पानी यहाँपे कम तुम डुबकी लगाने चले हो बहती हुई गंगा में धो -कर हाथ नहाने चले हो है दूर रहकर साथ-साथ चलनेसे वजूदे-दरिया तुम होके "बशर" किनारों को मिलाने चले हो © dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁