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किनारों को मिलाने चले हो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

किनारों को मिलाने चले हो

  • 91
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है पानी यहाँपे कम तुम डुबकी लगाने चले हो
बहती हुई गंगा में धो -कर हाथ नहाने चले हो

है दूर रहकर साथ-साथ चलनेसे वजूदे-दरिया
तुम होके "बशर" किनारों को मिलाने चले हो

© dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁

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