Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
सफर - कलम कलाकार (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

सफर

  • 67
  • 2 Min Read

*सफर*

उलझती सी पतंग कि डोर दरख्त पर..
दरख़्त से पनाह मांग रही हैं..
और सोचो कांटो भरा दरख़्त उसे ज़रा भी नही खलता..

क्युकी वो दरख्त उसकी ज़िन्दगी
और कांटे उसके गम
और चलती हवाए?

उसके ज़ख्मो पर मरहम,
दरख़्त के फूल उसकि पल दो पल कि खुशियाँ..

और बस यहि उसका सफर.. 😌

IMG_20231226_151730_343_1706468735.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg