कविताअन्य
*सफर*
उलझती सी पतंग कि डोर दरख्त पर..
दरख़्त से पनाह मांग रही हैं..
और सोचो कांटो भरा दरख़्त उसे ज़रा भी नही खलता..
क्युकी वो दरख्त उसकी ज़िन्दगी
और कांटे उसके गम
और चलती हवाए?
उसके ज़ख्मो पर मरहम,
दरख़्त के फूल उसकि पल दो पल कि खुशियाँ..
और बस यहि उसका सफर.. 😌