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हिंदी भाषा की महत्ता
भाषा संस्कार है तो साहित्य संस्कृति है। भाषा हमारी परंपरा, सभ्यता और विरासत को बचाती है ।भाषा और साहित्य एक दूसरे के घनिष्ठ हैं ।किसी भी देश की भाषा वहां की प्रकृति के अनुरूप बनाती हुई कालक्रम में परिमार्जित होती निरंतर विकास करती है ।भाषा की सुरक्षा साहित्य में होती है। आज हमारी हिंदी विश्व भाषा बन गई है। वह कनाडा टुबैगो सूरीनाम ,श्रीलंका और मॉरीशस आदि देशों में बहुधा लोगों द्वारा बोली जाती है। हिंदी अंतर्राष्ट्रीय भाषा एवं जन भाषा बन चुकी है ।
भले ही आज अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है,लेकिन सफलता पाने के लिए हमें अपनी राष्ट्रभाषा को नहीं भूलना चाहिए , क्योंकि हमारे देश की भाषा और संस्कृति हमारे लिए बहुत मायने रखती है। जितनी मानवीयता एवं करुणा का आभास हमें हिंदी कराती है ,उतना अन्य कोई भाषा नहीं कराती है।
'मन की आह!' और 'मन का आनंद' जितना केवल अपनी भाषा में ही प्रकट हो सकता है,उतना अंग्रेजी के 'आउच' और ' वाव 'में नहीं हो सकता ।
हिंदी की व्यापक स्वीकृति को देखते हुए केंद्र और राज्यों की सरकारों ने भी सरकारी एवं निजी कार्यालयों में हिंदी में काम करने का प्रस्ताव रखा है।
हिंदी के महत्व पर भारतेंदु ने बल देते हुए ओजस्वी भाषण दिया और कहा :--
" निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के ,मिटे न हिये को सूल ।"
साहित्य जोड़ता है, तोड़ता नहीं । हिंदी का साहित्य बहुत विस्तृत है। हिंदी भाषा में वैज्ञानिकता है जिसके कारण हिंदी बहुत ही सरल बन गई है ।
इसमें पढ़ना,लिखना,बोलना एक समान है ।जो लिखना वही पढ़ना और जो बोलना वही लिखना। इसका व्याकरण लय पर आधारित है। संस्कृत से निःसृत होने के कारण हिंदी में सहज ही प्राकृतिक नैतिकता और लयात्मक शिष्टता का समावेश हो गया है। हिंदी में सम्प्रेषणीयता के भी भरपूर तत्व है ।जरूरत है उदारता के साथ इसे स्वीकारने और प्रयोग में लाने की ।
अनेक कालजयी कृतियों से संपन्न हिंदी अब कहीं से भी विपन्न नहीं है। इसका जादू संसार के सिर चढ़कर बोल रहा है। अमृत भरे भावों और विचारों से अनुप्राणित हिंदी संजीवनी का काम कर रही है। यह हिंदी का ही प्रभाव था कि बेल्जियम के "फादर कामिल बुल्के" भारत में आकर भारत के ही होकर रह गए। हिंदी कुंठा मुक्त हो साहित्य का वह संसार रचे जिसमें सारे मानवीय मूल्य और कार्य व्यापार ' सर्वजन हिताय' हो ।
सन्दीप चौबारा
फतेहाबाद
11/09/2020