कवितानज़्म
साजिशें सर कलम करने की "बशर" हरसम्त
हर-सूरत नाकामयाब हों,
तहरीर-ए-कलम हर-सू हर-बार हर निगार की
ख़ूबसूरत और नायाब हों!
राह-ए-सुख़नवरी के सफ़र में होंगी मुश्क़िलात
बे - हिसाब मग़र "बशर",
कातिल-ए-सुख़न के जालिमों का हर हाल में
मुक़म्मल हिसाब-किताब हो!
© dr. n. r. kaswan "bashar"