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होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर

  • 84
  • 1 Min Read

न हुआ था मुक़म्मल ये जहाँ आदमी के बग़ैर
ना रहेगा मुक़म्मल ये जहाँ आदमी के बग़ैर

हुई थी यहाँ इब्तिदा-ए-जहाँ आदमी के बग़ैर
होगी 'बशर' इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर

© dr. n. r. kaswan "bashar"

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