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सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं

  • 40
  • 1 Min Read

राब्ते कुछ अपने "बशर" मौसमों की तरह निभाने लगे हैं
प्यार का सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं

© dr. n. r. kaswan "bashar"

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