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प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-2) - Anil Makariya (Sahitya Arpan)

कहानीहास्य व्यंग्य

प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-2)

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प्रथम ग्रासे मूषक पातः ★ (भाग-2)

बड़ी मुश्किल से किसी स्थायी नौकरी की आस बंधी थी और तिसपर यह अपशकुन!
मेरी दादी कहती थी कि अगर गलती से कोई बिल्ली मार दी जाए, तो हरिद्वार में जाकर गंगास्नान करना पड़ता है और इस पाप के प्रायश्चित के लिए ब्राह्मण को एक तोले सोने से बनी बिल्ली की मूर्ति दान करनी पड़ती है अन्यथा जीवनभर विपत्तियों का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है ।
अब मेरी नजर फिर इधर-उधर फिरते हुए मूषक की ओर उठी, मैंने खीज के मारे पास ही पड़ा हुआ जूता उठाकर उसे दे मारा ।
12 साल पहले गल्ली क्रिकेट में बॉल डायरेक्ट हिट थ्रो करके किसी को आउट करने के बाद यह मेरा दूसरा थ्रो था, जोकी सीधा जाकर लगा टेबल रूपी विकेट को और आउट हुआ उसपर रखा मेरा दिमाग ठंडा रखने का एकमात्र साधन...'टेबल फैन'।
महाराज मुझे देख थोडे चिंचियाये और फिर अपनी मूंछे फड़काकर मुझे चिढ़ाते हुए अपने बिल की ओर प्रस्थान कर गए ।
मैं टेबल फैन के खंडित-अखंडित भाग समेटता दादी वाली चेतावनी की आकाशवाणी सुनने लगा ।
मैं परसों अपनी स्थायी नौकरी के लिए दिए जाने वाले अंतिम साक्षत्कार का सामना करने से पहले बिल्ली वाले पाप से मुक्त होना चाहता था इसलिए दो साल से पेट काट-काटकर इकट्ठा की हुई अपनी जमापूंजी से शहीद बिल्ली मौसी की मूर्ति सुनार से बनवाई और सीधा हरि के द्वार का टिकट कटवाया ।
हरिद्वार से यह कसम लेकर आया कि जिस वजह से बिल्ली मौसी की शहादत हुई है उस वजह को जबतक शहर के सबसे गंदे नाले को अर्पण नही करूँगा तब तक मैं अपने लिए नया टेबल फैन नही खरीदूंगा , वैसे भी बिल्ली की मूर्ति ने जहर खाने लायक पैसे भी मेरी जेब में नही छोड़े थे तो नए टेबल फैन के लिए पैसे कहां से आते?
आधी रात को घर पहुंचते ही मैं सीधा सो गया बिना यह विचार किये की आज दिन भर मैं घर में नही था तो उस मूषक ने अपने खाने का इंतजाम कहां से किया होगा ?
क्योंकि अब तक तो वह मेरे खाने में से गिरे हुए टुकड़ों पर जिंदा था ।
रात को भूखा सोने की वजह से सुबह उठते ही मुझे भूख लगने लगी । मैं तुरंत पास की दुकान से अंडे और ब्रेड उधार लेकर कमरे में वापस आया ।
अंडे और ब्रेड की सुगंध शायद मेरे रूममेट तक पहुंच गई इसलिए वह थूथन ऊपर की ओर उठाये और अपनी मूंछे फड़काते हुए हवा को सूंघता पलंग के नीचे, मेरे पहले निवाले के मुंह तक पंहुचने के पहले ही आ धमका ।
उसे देखते ही मैंने निवाला वापस थाली में रख दिया और चुहेमार जहर की बोतल उठा लाया जिसमें बचा हुआ जहर मैं ब्रेड पर डालकर ......
अगर फिर से मैंने इस जहर का इस्तेमाल किया तो ?
मेरे आंखों में दिवा स्वप्न तैर गया जिसमें मैं मुंह खोले सोया हुआ था और मूषक मेरे मुंह में वही जहर बुझा ब्रेड का टुकड़ा गिरा रहा था ।
"न..हीहीही" ... मैं दिवास्वप्न देखते ही चीख पड़ा ।
"मैं उस बिल्ली की तरह अभी मरना नही चाहता ...मैं खुद को अपनी पहली स्थायी नौकरी करते हुए देखना चाहता हूं" मैं अब खुद को ही समझा रहा था ।
मैंने तत्काल प्रभाव से जहर वाला आईडिया दिमाग से मिटा दिया ।
मैंने चूहे की ओर नजर दौड़ाई वह मेरी प्लेट से, वही मेरा छोड़ा हुआ पहला निवाला मुंह में दबाए बिल की ओर दौड़ा जा रहा था ।
साथ ही गुस्से के मारे मेरे शरीर का खून भी उसी रफ्तार से दौड़ रहा था ।
क्रमश:

अप्रकाशित एवं मौलिक
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)

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दादी की परी
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