कवितानज़्म
दुनिया जहाँ में यहाँ - वहाँ ले गई
जिंन्दगी तू हमें कहाँ -कहाँ ले गई
मर्जी से हमारी तू कब किधर गई
इसनेकहा लेगई उसने कहा लेगई
हम मुहूर्ते-वक़्तके मुंतज़िर बैठेरहे
आंधियां वक़्तकी चलीं बहा लेगई
बे-सबब बे-दिली से होकर बे-बस
हमभी चलेगए तू जहां जहां लेगई
आलमे-सफ़र अपना ये रहा बशर
जिंदगी की जुस्तजू ही जां ले गई
मौसम - ए -बहार हमें बहा ले गई
रहा- सहा रुत - ए - ख़िज़ाँ ले गई
©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
सरी, कनाडा, ११/०१/२०२३
शब्दार्थ:- मुंतज़िर = प्रतीक्षारत,
बेसबब= अकारण, जुस्तजू= तलाश,
ख़िज़ाँ = पतझर
ख़िज़ाँ= पतझर