कवितानज़्म
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता है
खरीदकर शब्दकोश घर रख लेने से
नहीं लिखा जाता है शेर -ओ-सुख़न
कागज कलम दवात घर रख लेने से
आमद खुद ब खुद हो जाती है बशर
सबके ग़म अपने दिलपर रख लेनेसे
जब इश्क़ किसी से हो जाता है तो
आशिकी खुद चल कर आ जाती है
मौसमों के मिज़ाज बदल जाते हैं
घटाएं गाती हवाएं सरगम सुनाती है
सुख़नवरी मुक़म्मल होने लगती है
दर्द-ए-ग़ुरबत अपना कर रख लेने से
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर"
सरी/०४/०१/२०२४