कविताअतुकांत कविता
मैं एक बीज हूँ
जिसे गिरना होगा.
अपने पूरे अस्तित्व समेत
धरती में जाकर पिधलना होगा.
अपने अस्तित्व के कण कण को
छिन्नभिन्न करके खोना होगा.
धरती
जहाँ पर ठहरी हुई
सृष्टि की सुरम्य चेतना की परतें
इंतजार कर रही है नई सुबह का..!
और एक दिन
फिर से जन्म लेना होगा मुझे
पत्ते,डालियाँ, फलों और बीज के रूप में
फिर से मरने के लिए ही तो..!
मृत्यु- जीवन का सनातन सत्य
भावना भट्ट
भावनगर, गुजरात
9/9/2020