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जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं

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नज़र अपनी आजकल अपने बसमें नहीं
लहू जिगर का पहुँचता नस - नस में नहीं

किसी गैर से करे क्या तवक़्क़ो यहाँ कोई
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" २०/१२२०२३

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