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कवितानज़्म
मालूम नहीं "बशर" दोज़ख होगा मयस्सर कि बहिश्त होगी नसीब अपने मग़र पुर शिद्दत ठानले कोई तो जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/१८/१२/२०२३