लेखअन्य
"शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं"।
## संस्मरण##
बात उन दिनों की है जब मैं नौवीं कक्षा में थी । हमारे नये विज्ञान संकाय के अध्यापक जगदीश खयालिया जी बहुत बहुत ही रोक टोक करते थे। हमें बहुत गुस्सा भी आता था कि टीचर तो और भी हैं कोई नहीं रोकता कहीं भी आयें जायें। मगर जगदीश मास्टर जी नजरे हमेशा लड़कियों पर रहती थी। किसी भी लड़की को स्कूल से बाहर देख लेते तो बहुत सुनाते थे।स्कूल में गर्मियों में पानी की किल्लत के चलते बच्चे अक्सर स्कूल के आस पास के घरों में पानी पीने चले जाते थे। एक दिन मैं भी मेरी मित्र मंडली के साथ पड़ोसी घरों में पानी पीने चली गई। वापस लौटीं तो सर कक्षा में चहल कदमी कर रहे थे। हम सबने कक्षा में आने की अनुमति मांगी तो गुस्से से उबल पड़े। कहने लगे तुम लोगों को अक्ल वक्ल नहीं है क्या?कितनी बार समझा चूका हूं तुम लोगों को। हम लोग भी कुछ नहीं बोले और मास्टर जी को घूरते रहे। मास्टर जी एक बारगी तो कुर्सी पर बैठ गए और कुछ चिंतन करते रहे मगर फिर उठे और एक बच्चे को डंडा लाने को बोला।हम सब डर के मारे सहम सी गई। हम माफी मांगते रहे मगर सर का गुस्सा सातवें आसमान पर था। और हमें चार चार डंडे लगाए।हमारी आंखों में आंसू आ गए। आंखें सर की भी नम थीं , दर्द उन्हें भी हो रहा था मगर हमारी भलाई के लिए ये सज़ा बेहद जरूरी थी क्योंकि हम लोग सर के कई बार कहने के बावजूद स्कूल से बाहर निकल जाते थे।वो सब बातें बाद में समझ आई कि सर स्कूल से बाहर क्यों नहीं जाने देते थे। जब दसवीं में थे उन टीचर का मर्डर हो गया और वो हमें छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए विदा हो गए
उफ़्फ़फ़ सर के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। बचपन मे रोक टोक जेल ही लगती है बड़े होकर अहमियत पता लगती है लेकिन तब तक वो लोग हमारी आंखों से ओझल हो चुके होते है।