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कवितानज़्म
ये खामोशियां इस क़दर "बशर" नहीं अच्छी अपने चाहने वालों से मकड़जाल से भर जाया करते हैं अक़्सर बंद पड़े मकान सालों से ©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"