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कवितानज़्म
सुकून-ए-क़ल्ब की जुस्तजू में "बशर" हुई नींदें हराम रातों की किस मुकामपे आ ठहरा कारवां यादोंका उनसे मुलाक़ातों की ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/२९/११/२०२३