कवितानज़्म
*उन्हींसे दूर रहना उन्हींको चाहना*
बड़ा मुश्क़िल है ये इल्म -ओ-हुनर आजमाना भी
उन्हीं से दूर रहना और उन्ही को चाहना भी!
मुनासिब नहींहै रखना अंधेरेमें अपने अहबाब को
चाहें जज़्बात जिनको बताना उन्हीं से छुपाना भी!
लाख रखो जज़्ब दिल में फसाने गैरों की नज़र से
नज़र मग़र हर-वक़्त हमपर रखता है जमाना भी!
महफूज़ हवाओं से भला कौन रह पाया है "बशर"
भले कम कर दिया है गलीकूचे में आनाजाना भी!
© डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
सरी, कनाडा/२२/११/२०२३