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रूह तक उतर जाने दो - Sonam Kewat (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रूह तक उतर जाने दो

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जिस्म पर घाव नहीं लगा पर
मन को थोड़ा संभल जाने दो
थोड़ी गहराई से समझना है तुम्हें
तो मुझे रुह तक उतर जाने दो

गर में पहुंची रूह तक तो
हर दर्द को चकनाचूर कर दूंगी
पाने और खोने का पता नहीं पर
डर तो सारे दूर कर दूंगी

सरे आम ना रख घाव अपना
पर मुझसे छुपाना भी ठीक नहीं
मैंने तो मरहम बनना सीखा है
छोड़ो जाने दो अगर कोई तकलीफ नहीं

तुझसे मिली नहीं कभी पर
रूह का रूह से मिलना होता है
एक रुह ना सो पाए आधी रातों तक
एक को देखो कितने चैन से सोता है

यूं हर बात में समझाया ना करो
कभी आजमा कर देखो कितनी समझदार हूं
समझ कर भी नासमझ बन रही हूं
जो समझ से परे जाने को भी तैयार हूं

बहुत समझाते हो ना तो सुनो
अगर आना हुआ तो बिना बुलाए आउंगी
जाना होगा तो खुद चलीं जाउंगी
तेरी मर्जी से फर्क तो बहुत पड़ता है
पर एक दिन बिना बताए रूह तक उतर जाऊंगी

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