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कवितानज़्म
मुफ़लिस नाखुदा समंदर से निकलकर साहिल पर आकर मर जाता है दिनभर दिहाड़ी कमा कर मुफ़लिस घर आकर मर जाता है डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"