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कवितानज़्म
*इसका हमें न पता था,* लिखने पढने बोलने का सऊर-ओ-सलीक़ा हमें न पता था जुबान -ए -उर्दु का कब सीखा तौर -तरीक़ा हमें न पता था कब मनको भा गया कलम को रास आ गया सुख़न इसका जुबाँ से भी होगा "बशर" को इश्क़ इस का हमें न पता था ©️"बशर"/७/११/२३