Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
आदमी को आदमी हि रहनेदो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

आदमी को आदमी हि रहनेदो

  • 59
  • 3 Min Read

*आदमी को आदमी ही रहने दो*

मुकम्मल हयात करे बसर ये नहीं तबियत बंदे की,
फ़रिश्ता बनकर जिये ऐसी नहीं फ़ितरत बंदे की!

आदमजात को आदमीहि रहनेदो खुदा न बनाओ,
इसमें हैं खतरे बहुत गर बदल जाए नियत बंदे की!

शैतान का न भगवान का करनेदो किरदार उसको,
काफी है कि इन्सान की बनी रहे हैसियत बंदे की!

शुक्र है कि मुफ़ीद है अभी तक खैरियत बंदे की,
और न ज्यादा करो तलब बशर कैफ़ियत बंदे की!

डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"
०२/११/२०२३

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg