Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
माँ तुम्हारे रूप से - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कवितागीत

माँ तुम्हारे रूप से

  • 301
  • 5 Min Read

गीत...

माँ तुम्हारे रूप से निर्मित हुआ साकार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

पूछता हूँ स्वयं से जब मैं धरा पर कौन हूँ।
माँ नहीं मिलता यहाँ उत्तर इसी से मौन हूँ।।
किंतु हूँ जो भी तुम्हारे अंश का उपकार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

भूल सकता हूँ नहीं मैं माँ तुम्हारे त्याग को।
कामना से हो रहित उन्नति भरे अनुराग को।।
नित्य जो करती रही माँ तुम वहीं सत्कार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

मानते हर ग्रंथ पावन माँ सृजन की मूल है।
हो रही जिससे सुवासित ये धरा वो फूल है।।
सत्य है माँ मैं तुम्हारे कोश का आभार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

माँ सरीखा हो नहीं सकता कोई संसार में।
देखता हूँ मैं तुम्हें अब भी मिले उस प्यार में।।
कर्मरत सुचि भावना का मैं सहज उद्गार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

माँ तुम्हारे रूप से निर्मित हुआ साकार हूँ।
देखती जो तुम रही उस स्वप्न का आकार हूँ।।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

IMG_20231027_185937_998_1698480846.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg