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जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल

  • 42
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पांच राज्यों में चुनावी माहौल
हर राजनीतिक दल में जारी है कोलाहल
जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल

सियासी दल चाहें जिताऊ प्रत्याशी
भविष्य निर्माण को नेताओं में अजब फंताशी
जीतकर बरसाएंगे रेत से धनराशि

महफिलों में भरोसे का वादा
सौदेबाजी में मस्त हैं राजनीतिक ओढ़े लबादा
विकास योजनाएं औंधे मुंह ज्यादा

धन्नासेठों के मन में आकुलता
निवेश से पहले परखें प्रत्याशी की क्षमता
डूबेंगे या उबरेंगे जाने नियंता

गली गली नारों का शोर
चिंटुओं की फौज नाचती जैसे मदमस्त मोर
बिरयानी खोजने वाले लपकें और

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