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कवितानज़्म
*ख़त्म आदमी की पहचान हो गई * आदमी की जात 'बशर' इतनी नादान हो गई ख़त्म आदमी को आदमी की पहचान हो गई डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २८/१०/२०२३/सरी