कवितानज़्म
*कुछ गीला पड़ गया है*
पानी किसी दरिया का इसमें ज़हरीला पड़ गया है,
बदन बेचारे सारे समंदर ही का नीला पड़ गया है!
क्या -क्या न किए जतन हबीब की खुशी के लिए,
कम हमारे मुकम्मल दिल का वसीला पड़ गया है!
तेजीसे पत्थरोंके दाम बढ रहेहैं आजकल शहर में,
शीशे के महलों के पीछे कोई कबीला पड़ गया है!
अपने 'अहद में नहीं बना सके बशर फ़साना कोई,
क़िताबे-इल्मो-ओ-हुनर पर कुछ गीला पड़ गया है!
डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
१६/१०/२०२३/सरी