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राजनीतिकों में चिंता नहीं शेष - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

राजनीतिकों में चिंता नहीं शेष

  • 129
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लोकतंत्र में बहुत कठिन
करना चोर की पहचान
तरह तरह के लबादों में
लिपटे सियासी श्रीमान
एक दूसरे से अलहदा हैं
सबके राजनीतिक लक्ष्य
जनहित के दावे करते हैं
सब पर जनता बने भक्ष्य
देश में विकास की खातिर
बनीं जो योजनाएं बेशुमार
उनसे लाभान्वित हुए अभी
तक पूंजीपतियों के परिवार
अरबपतियों की बढ़ती तादाद
दे रही सबको एक खुला संदेश
अर्थ सकेंद्रण के तथ्य पर अब
राजनीतिकों में चिंता नहीं शेष

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