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कवितानज़्म
ईमान है आदमी का* हयात है कि बशर समंदर में मुसलसल तलातुम का आना ईमान है आदमी का खुदको अतफ़ाक़ा तूफानों से बचाना डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर/१२/१०/२०२३"