गीत
बैठ अकेले उपवन में, कुछ बातें सोच रहा था,
निज त्रुटियों से व्याकुल,होकर खुद को कोस रहा था,
पर याद आई प्रिय की बातें, ज्यादा अवसाद नहीं करते!
बीता समय न वापस आयेगा, बीती बात नहीं करते!
आओ मिलकर के दोनों, फिर से प्रयास करते है।
जो शूरवीर होते हैं, वो मरते दम तक लड़ते हैं।
बस इतना कह कर चली गई थी, अब अवसाद नहीं करना।
प्रियतम जाती हूं, फिर आऊंगी,अब मुझको याद नहीं करना।
लक्ष्य हेतु जुट जाओ प्रिय, समय नहीं है अब विचार का।
नव प्रकाश मिलेगा तुमको, अपना दौर आयेगा सुख का।
हर्षित अवस्थी मानस
"मानस संवेदना" महाकाव्य में "
"एकाकीपन" सर्ग"से