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Sahitya Arpan - हर्षित अवस्थी मानस
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हर्षित अवस्थी मानस

'अमर लेखनी'

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  • कविताअन्य

    "संवेदना" [महाकाव्य] से

    • Added 11 months ago
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    • 153
    • 6 Mins Read

    अभिलाषा थी
    अधरों में चुम्बन की अभिलाषा
    बाहों में भरने की अभिलाषा
    अभिलाषा दृग में रखने की
    तेरे अंतश में बसने की

    अभिलाषा थी

    अभिलाषा तुझको पाने की
    थी आशा तुमको अपनाने की
    अभिलाषा मन में बसने
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    कवितागीत

    संवेदना

    • Added 11 months ago
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    • 126
    • 3 Mins Read

    बैठ अकेले उपवन में, कुछ बातें सोच रहा था,
    निज त्रुटियों से व्याकुल,होकर खुद को कोस रहा था,

    पर याद आई प्रिय की बातें, ज्यादा अवसाद नहीं करते!
    बीता समय न वापस आयेगा, बीती बात नहीं करते!

    आओ मिलकर के दोनों,
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    संवेदना ,<span>गीत</span>
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    गीत

    संवेदना "महाकाव्य"

    • Added 11 months ago
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    • 72
    • 3 Mins Read

    बैठ अकेले उपवन में, कुछ बातें सोच रहा था,
    निज त्रुटियों से व्याकुल,होकर खुद को कोस रहा था,

    पर याद आई प्रिय की बातें, ज्यादा अवसाद नहीं करते!
    बीता समय न वापस आयेगा, बीती बात नहीं करते!

    आओ मिलकर के दोनों,
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    कवितागीत

    संवेदना

    • Added 11 months ago
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    • 108
    • 3 Mins Read

    पता नहीं! कैसे खोया ?
    .अंतर्मन जिस पर था रोया।

    वो भाग्य मिला! जो था सोया।
    ..वो भी न मिला! जो था बोया।

    फिर कैसे कहूं की कर्म प्रधान!
    लगता है! बदल गया विधान!


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    संवेदना ,<span>गीत</span>
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