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नन्ही चींटी - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

नन्ही चींटी

  • 201
  • 5 Min Read

नन्ही चींटी नहीं रुकती है
हर पल चलती है
कार्य पूर्ण न हो तब तक
नहीं थकती है
इंसानों को सिखलाती है
रुक मत तू
गर रुक जायेगा
मंजिल तक नहीं पहुंच पायेगा।।

नन्ही चींटी गिरती है
कई बार
दिवारों पर चढ़ते वक्त गिरती है
फिर भी खुद को संभालती है
वह जानती है,
जरुरी नहीं सफलता
एक प्रयास में ही मिले
चिंटी सिखलाती है
तू रुक मत
निरंतर प्रयास कर।।

नन्ही चींटी सिखलाती है
एकता के साथ रहना
चलती है सपरिवार कतारबद्ध सिखलाती है
इंसान तू हार मत
तू थक मत
तू चलता चल
तू गिरेगा तभी तो उठेगा।।

नन्ही चींटी देती है संदेश
मौन रहकर भी कार्य करना
जब तक मंजिल प्राप्त न हो
न थकना तू
निरंतर प्रयास करना
देती है संदेश
तू रुक मत थक मत
इंसान जो तू रुका
मूल उद्देश्य नहीं पायेगा।।

नन्ही चींटी देती है संदेश
इंसान तू समय को दे महत्व
जब तक मंजिल न मिले तू
थक कर मत बैठ
मिलेगी मंजिल निश्चित ही
तू बस बिना थके कर्म कर
तू कुछ सबसे अलग कर।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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