कविताअतुकांत कविता
हिंदी की ब्यथा
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आज मनाये मेरा उत्सव।
कैसा है ये पागल दीवाना।
मुझे बना के सौतन उसकी।
कहता है तू है मेरी जाना ।
मैं हिन्दी हिन्दुस्तान है मेरा।
हर हिन्दुस्तानी में मेरा बसेरा।
मैं हूं सीधी और सरल हूं मैं।
सब में मैं मिल जाती हूं नित।
मुझे किसी से कोई बैर नहीं।
मैं सबकी हूं सब मेरे हैं अपने।
ब्यथित हृदय बस मेरा है अब।
अपना भी न रहा मेरा है अब ।
कुछ भी हो पहचान रहूंगी तेरी।
भले भुला दो तुम अब हमको।
मैं हूं भारत की भाषा सदियों से
और रहूंगी इस भारत की होकर।
जय प्रकाश श्रीवास्तव