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कवितानज़्म
बेहिसाब सुलझी हुई मिलीथी बशर हयात आदमी को आदमी ने ही उलझा कर रख दिया बेबात आदमी को डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/०९/०७