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बस कट, पेस्ट का खेल - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

बस कट, पेस्ट का खेल

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डर, अविश्वास और नफ़रत
सत्ता के सदा रहे हथियार
इनके बल पर विरोधियों को
हाशिए पे फेंकें सभी किलेदार
मतलबी औ क्रूर होता है सत्ता
में बैठा हुआ हर एक रसूखदार
उसको भुनगे से ही नजर आते
आम जनता में शुमार किरदार
सत्तानशीन हर पग पर लड़ते
जनता से ही काल्पनिक युद्ध
हर मामले में खुद को साबित
करते जग में सबसे उपयुक्त
ऐसे में जो कोई भी करता है
उनसे किसी मुद्दे पर सवाल
त्यौरियां चढ़ जाती हैं उनकी
मिजाज हो जाता सुर्ख लाल
शिक्षा के जरिए ही होता रहा
जागरूकता का सतत विस्तार
अब शिक्षा जगत में हो रहा है
फुस्स फार्मूलों का थोथा प्रचार
पूरे देश को क्षेत्र विशेष के लिए
चाहिए कितने प्रशिक्षित कर्मकार
सरकार के पास ऐसे आंकड़ों के
नाम पर बस वायदों की भरमार
शोध और अनुसंधान के नाम पे
हर तरफ बस कट, पेस्ट का खेल
दिनोंदिन बढ़ती फीस निकाल ले
रही है युवाओं का शारीरिक तेल
शोध और अनुसंधान से ही तय हों
जनसमस्याओं के निपटारे के सूत्र
तभी शोध की प्रासंगिकता सिद्ध
होगी,देश होगा सच में मजबूत
सभी विश्वविद्यालयों के हाथ से
छीन लिए जाएं शोध के काम
इसके लिए अलग से ही तय किए
जाएं शोध के मानक नियम तमाम
उच्च स्तरीय परीक्षा के जरिए तय
किए जाएं शोध संस्थानों के प्रमुख
ताकि वास्तव में उनमें दिखे शोध
के लिए जरूरी मानसिक भूख
भाई, भतीजावाद और पूर्वाग्रहों से
सराबोर है विश्वविद्यालयों का नेतृत्व
शोध और अनुसंधान की बजाय
तिकड़मों में ही लगा रहता है चित्त

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