गजल
गज़ल
212 212 212 212
ख्वाब झूठे सही, पर सजाना पड़ा।
जीत कर खेल में,हार जाना पड़ा।।
लोग शायद यहां सब परेशान हैं।
चोट खाई मगर मुस्कुराना पड़ा।।
आज घायल यहां आम इंसान है।
घाव अपना जहां से छुपाना पड़ा।।
नाम उसका लिया जो नहीं था मिरा।
दुश्मनों को भी अपना बनाना पड़ा।।
राह" पूनम "की थी मुश्किलों से भरी।
आज फूलों से दामन बचाना पड़ा।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव "पूनम "