Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
समझें पर्व का मर्म - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

समझें पर्व का मर्म

  • 80
  • 3 Min Read

भाई और बहन के प्रेम
का प्रतीक है रक्षाबंधन
हर साल यह करता है
प्रीति का पुनरावलोकन
एक दूजे के लिए दोनों के 
मन में रहता खास लगाव
राखी पर्व भरता है दोनों के
मन में और विशेष उछाह
युगों युगों से सनातनी निभा
रहे हैं इस त्यौहार की रस्म
इसके जरिए पुष्ट करते वो
पारस्परिक प्रीति का बंधन
हर भाई अपनी बहन को देता
है दिल से रक्षा का आश्वासन
फिर भी जब तब अनाचार की
सुर्खियां करती ध्यानाकर्षण 
भौतिकता की चकाचौंध में
भूल रहे हैं लोग अपना कर्म
हर बहन खुशहाल होगी तभी 
जब सब समझें पर्व का मर्म

IMG_20230901_102017721_1693547165.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg