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कवितानज़्म
किस चीज़ का है तुझे ग़ुरूर -ओ- गुमान यहाँ बस चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ ©डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" २०२३/०८/३१